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आ यस्ते॑ सर्पिरासु॒तेऽग्ने॒ शमस्ति॒ धाय॑से। ऐषु॑ द्यु॒म्नमु॒त श्रव॒ आ चि॒त्तं मर्त्ये॑षु धाः ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā yas te sarpirāsute gne śam asti dhāyase | aiṣu dyumnam uta śrava ā cittam martyeṣu dhāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। यः। ते॒। स॒र्पिः॒ऽआ॒सु॒ते॒। अग्ने॑। शम्। अस्ति॑। धाय॑से। आ। ए॒षु॒। द्यु॒म्नम्। उ॒त। श्रवः॑। आ। चि॒त्तम्। मर्त्ये॑षु। धाः॒ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:7» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्निशब्दार्थ विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् (यः) जो (धायसे) धारण करनेवाले के लिये (ते) आपका (सर्पिरासुते) घृतों से सब प्रकार उत्पन्न किये गये में (शम्) सुख (अस्ति) है उसको ग्रहण करता (एषु) इन (मर्त्येषु) मनुष्यों में (द्युम्नम्) यश वा धन को (आ, धाः) धारण करता (श्रवः) अन्न को (आ) धारण करता (उत) और (चित्तम्) संज्ञान को (आ) धारण करता है, उसके लिये आप ऐश्वर्य्य दीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो कोई किसी के लिये विद्या धन और विज्ञान को धारण करता है तो उसके लिये उपकार किया भी पुरुष प्रत्युपकार के लिये वैसे ही सत्कार को करे ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निशब्दार्थविद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यो धायसे ते सर्पिरासुते शमस्ति तद्धरत्येषु मर्त्येषु द्युम्नमा धाः श्रव आ धा उत चित्तमा धास्तस्मै त्वमैश्वर्यं देहि ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (यः) (ते) तव (सर्पिरासुते) सर्पिभिः सर्वतो जनिते (अग्ने) विद्वन् (शम्) सुखम् (अस्ति) (धायसे) धात्रे (आ) (एषु) (द्युम्नम्) यशो धनं वा (उत) (श्रवः) अन्नम् (आ) (चित्तम्) संज्ञानम् (मर्त्येषु) (धाः) दधाति ॥९॥
भावार्थभाषाः - यदि कश्चित् कस्मैचिद्विद्यां धनं विज्ञानञ्च दधाति तर्हि तस्मा उपकृतोऽपि प्रत्युपकाराय तादृशमेव सत्कारं कुर्यात् ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर एखाद्याने एखाद्यासाठी विद्या व धन आणि विज्ञानाचा स्वीकार केला तर उपकारित पुरुषानेही प्रत्युपकारासाठी तसेच करावे. ॥ ९ ॥